एक कहानी
यह एक छोटी कहानी जो मैने दो साल पहले लिखी।
भोजू का दिन
बड़े सवेरे भोजू की नींद खुली और चौंक गया। भोजू एक छोटा लड़का था। वह छ: साल का था। वह थोड़ा नटखट था अौर उसकी अांखें सर्वदा चमकती रहती थीं।
भौजू अपनी मां को चौक में देखकर उसकी तरफ भागा। उसने मां की साड़ी खींची। मां मुस्कराती फ़र्श झाड़ू से साफ़ कर रही थी। भोजू ने मां से कहा "आज मैं राजू के साथ खेलूँगा।"
"ठीक है बेटा। लेकिन पहले तुझे ऐक-दो रोटी खानी चाहिये।"
भोजू ने दो रोटियाँ लेकर अपना मुँह पूरा भरा और बाहर दौड़ा। उसका दोस्त राजू खेत के बग़ल में चल रहा था। भोजू अपने दोस्त को देखकर बड़ा खुश था। "हे राजू! मैं नदी में खेलना चाहता हूँ। कई मछलियों को पखरेंगे। चलो।"
राजू ने कहा--"लेकिन हम दोनों मछुआरे नहीं हैं। हमारे पास कोई मछली पकड़ने का डँडा नहीं हैं।"
भोजू ने एक क्षण इस के बारे में सोचकर कहा "कोई बात नहीं। हम भालू की तरह अपने हाथों से मचली पकड़ेंगे।
"अरे वाह!" राजू ने कहा। "हम भालू बनेंगे! चलो।"
दोनों छोटे लड़के नदी की ओर चल गए। नदी पहुँचकर वे किनारे पर बैठ गए। भोजू चाहता था कि वह एक बड़ी मछली पकड़े। अगर वह मछली पकड़ेगा तो उसका परिवार बड़ा भोजन कर सकेगा और उसकी माँ खुश होगी।
लेकिन मछली नहीं आई। लड़के दिन भर प्रतीक्षा करते रहे। वे पानी में चले लेकिन को मछली नहीं दिखी।
अँतत: दे बिना मछली पकड़े घर लौटे। जब भोजू अपने घर पर पहुँचा रसोईघर मे अच्छी गँध आ रही थी। माँ ने कहा "अरे भोजू, खाना खाओ!"
माँ बाज़ार गयी थी और उन्होंने मछली खरीदी। भोजू बहुत ख़ुश था और वह जल्दी से मछली खाने लगा। फिर उसने सोचा "लेकिन राजू को भी भूख लगती होगी।" उसने बाहर जाकर राजू को बूलाया। राजू आया और दोनों लड़कों ने बड़ा भोजन किया।
6 Comments:
बहुत अच्छे ईवन भाई। मैं आपका ब्लॉग पढ़कर अत्यंत प्रसन्न हुआ। यदि मैं आपकी मदद कर सकूँ तो मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होगी। मेरा ई-मेल पता हैः ranveerkumar@gmail.com
By रणवीर, at 12:46 PM
it was nice to read ur story...I guess by now u must have completed your PHD. Let me know if we can share our thought on your subject. write me on: bharat1010@gmail.com
By Anonymous, at 2:19 AM
aap bhai chare ko protsahan de rahe hai mai aap ke sath hu my dear JAI HIND
By Anonymous, at 3:10 AM
एक सुन्दर और मासूम कहानी.
Thank you!
By Sulabh Jaiswal "सुलभ", at 11:25 PM
ईवान भाई, कहानी सुंदर है।
By दिनेशराय द्विवेदी, at 1:42 AM
बहुत उम्दा कहानी लिखी ईअन। यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आपको हिंदी में रुचि है। इस जज्बे को बनाए रखें।
पढि़ए संजय उवाच
By Sanjay Kareer, at 4:07 AM
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